अजय दीक्षित
रक्षा विशेषज्ञों का मत है कि अब भारत मिसाइलों के लिए अंतराष्ट्रीय मार्केट खुलेगा क्योंकि पाकिस्तान से हुए युद्ध में ब्रह्मोस,आकाश, मिसाइलों ने नौ और दस की दरम्यानी रात पाकिस्तान के एयर वेज नूर खान,आदि निशाना बना कर बहुत नुकसान पहुंचाया इतना ही नहीं आकाश ने पाकिस्तान की शाहीन मिसाइल को हवा में मार गिराया। स्वदेशी तकनीकी से जुड़े जीपीएस नेविक ने भी अमेरिका के जीपीएस को पीछे छोड़ दिया। लेकिन रूस में बने एस 400की मांग भी बढ़ने वाली है क्योंकि इस एयर डिफेंस सिस्टम ने तुर्की से पाकिस्तान द्वारा आयात ड्रोन को भी नेस्तानाबूद कर दिया।
पाकिस्तान इस युद्ध में चीनी टेक्नोलॉजी के एयर डिफेंस सिस्टम की बजह से फैल हुआ जबकि उसने पंजाब, राजस्थान, गुजरात की सीमा पर 40 हमले किए लेकिन सब विफल रहे। दरअसल भारत की मिसाइल तकनीकी पर अपने वैज्ञानिकों ने बहुत शोध किया और इसरो ने उपग्रह और मिसाइल बनाने का कार्य 1964 में आरंभ किया था तत्कालीन समय में अब्दुल कलाम ने पहले एप्पल, रोहणी, सेटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े फिर श्री हरिकोटा सेटेलाइट स्टेशनों का कार्य शुरू किया।ये सब स्वदेशी थे ।
सेटेलाइट के दिशा में क्रायोजेनिक इंजन एक रुकावट बनी
कई देशों से अनुरोध किया लेकिन किसी ने नहीं दिया तब कस्तूरीरंगन ने अपना क्रायोजेनिक इंजन बनाया।
उसके बाद भारत ने पीछे मड़कर नहीं देखा आज हम मिसाइलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो नहीं बल्कि विषय विशेषज्ञ है। बहुत सी मिसाइलों का जखीरा है जिसमें ब्रह्मोस, अग्नि,आकाश, निर्भय हल्प, और जाने कितनी ।5000 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल है।
इन मिसाइलों का एक अंतराष्ट्रीय बाजार भी है जिसका मनमाना मूल्य होता है। फ्रांस जर्मनी, इटली, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, इनके खरीददार हैं। पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारत की मिसाइल ने जलवा दिखाया है और इसकी जानकारी विश्व बिरादरी को हुई है।
अब तक यूरोपीय देशों और अमेरिका, चाइना ही रक्षा क्षेत्र में एशियन देशों,अफ्रीकन देशों को गोला बारूद, तोप, लड़ाकू विमानों, मिसाइल, ड्रोन, राइफल, बेचते थे। बताया जाता है कि यह पूरे साल में 5 लाख करोड़ तक का होता है जिसमें भारत तो बहुत बड़ा खरीददार है। आजकल यूरोपीय देश तो इसी आधार पर दोस्ती, दुश्मनी यह करते हैं जैसे यूएसए अपने मार्केट में किसी देश को घुसने नहीं देता। चाइना और अमेरिका का टैरिफ बार भी यही है। सऊदी अरब, कतर यमन, दोहा, कुवैत, सहित खाड़ी के देश अमेरिका से लड़ाकू विमान तथा रक्षा उत्पाद खरीदते हैं जबकि पलेस्टाइन,को चाइना,हमास को रूस हथियार बेचते हैं। यहां तक कि अमेरिका तो बकायदा आईएमएफ, विश्व बैंक से ऋण भी हथियारों की खरीद के लिए दिलवाता है।रूस का इस कारोबार भी कब्ज़ा है उसकी इकोनॉमी इसी हथियारों की मार्केट से चलती है।
भारत भी मिसाइलों से इस बाजार में उतारना चाहता है वह पहले ही अफ्रीकन देशों को गोला बारूद, स्नाइपर्स,बेच रहा है।उसका इस बार रक्षा निर्यात चालीस हजार करोड़ रुपए था ।अब भारत ने अपना मार्केट एफडीआई के लिए रक्षा उत्पादन हेतु खोल दिया है।
( Lekh Mein vyakt lekhak ke Niji vichar Hain)