संवैधानिक प्रक्रिया या प्रशासनिक मज़ाक ?
हाईकोर्ट की रोक बरकरार, आयोग ने मानी चूक — नामांकन समेत सभी चुनावी कार्यवाही पर लगी रोक
देहरादून/नैनीताल, 24 जून | विशेष संवाददाता
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर जारी कानूनी और प्रशासनिक रस्साकशी एक बार फिर चर्चाओं में है। नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा पंचायत चुनावों पर जारी अंतरिम रोक को आज (मंगलवार) भी यथावत बनाए रखा गया, वहीं दूसरी ओर राज्य निर्वाचन आयोग ने पहली बार स्पष्ट स्वीकार किया कि अदालत के आदेश के अनुपालन में आयोग द्वारा 21 जून को जारी की गई अधिसूचना स्थगित कर दी गई है, और अब कोई भी नामांकन या चुनावी प्रक्रिया तब तक नहीं होगी जब तक अगला निर्देश प्राप्त न हो।
यह आदेश आज दिनांक 24 जून 2025 को आयोग द्वारा संख्या-1242/रा0नि0चु0अ0प्र0-2/4324/2025 के अंतर्गत जारी किया गया है, जिसमें माननीय उच्च न्यायालय के 23 जून के आदेश का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि 25 जून को अगली सुनवाई तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की समस्त कार्यवाही स्थगित रहेगी।
यहां देखें राज्य निर्वाचन आयोग का स्थगन की अधिसूचना


गजट नोटिफिकेशन पेश हुआ, पर कोर्ट ने कहा — अभी नहीं
सरकार ने आज न्यायालय में यह दलील दी कि 9 जून को आरक्षण नियमावली बनाई गई थी और 14 जून को उसका गजट नोटिफिकेशन भी हो चुका है, लेकिन पिछली सुनवाई में यह नोटिफिकेशन समय पर न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सका। सरकार की ओर से इस “कम्युनिकेशन गैप” को न्यायालय के समक्ष रखते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की गई।
परंतु मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई 25 जून को ही होगी और तब तक पूर्व में लगाई गई रोक लागू रहेगी।
निर्वाचन आयोग ने मानी गलती, अधिसूचना की वापसी
हालांकि, 21 जून को राज्य निर्वाचन आयोग ने आगामी पंचायत चुनाव के लिए नामांकन की तिथियाँ घोषित कर दी थीं और 26 जून से प्रक्रिया प्रारंभ होनी थी, परंतु यह स्पष्ट रूप से न्यायालय की अंतरिम रोक के विरुद्ध था। आज आयोग ने अपने संशोधित आदेश में इस बात को स्वीकार करते हुए लिखा कि चूंकि आरक्षण की नियमावली विधिसम्मत ढंग से नोटिफाई नहीं हुई थी, अतः 21 जून की अधिसूचना को न्यायालय के आदेशानुसार निरस्त किया जाता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि आयोग ने अब स्पष्ट किया है कि 25 जून को होने वाली अगली सुनवाई तक पंचायत चुनाव संबंधी कोई भी प्रशासनिक या निर्वाचन कार्यवाही नहीं की जाएगी।
राजनीतिक असंतोष और संवैधानिक विफलता का द्वंद्व
कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने इस पूरे घटनाक्रम को प्रशासनिक अराजकता और लोकतांत्रिक व्यवस्था का उपहास बताया है। उन्होंने पूछा कि “प्रदेश में पंचायती राज मंत्री आखिर कौन है?” और “क्यों बार-बार उच्च न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज किया जा रहा है?”
उनका आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर नियमावली सार्वजनिक नहीं की और अब जब अदालत की नाराज़गी सामने आई, तब जाकर उसे गजट नोटिफिकेशन की याद आई। “यह न सिर्फ न्यायालय की अवमानना है बल्कि जनता के साथ धोखा भी है,” उन्होंने कहा।
क्या चुनाव आयोग भी सरकार के दबाव में?
इस प्रकरण में एक गंभीर पहलू यह भी है कि राज्य निर्वाचन आयोग जैसी स्वतंत्र संवैधानिक संस्था से भी गलती हो गई। क्या यह प्रशासनिक दबाव का परिणाम है? या आयोग और सरकार के बीच समन्वय की कमी का?
जब हाईकोर्ट ने स्पष्ट रोक लगा रखी थी, उस स्थिति में आयोग का अधिसूचना जारी करना और फिर कोर्ट के निर्देश के बाद उसे वापस लेना — यह संवैधानिक संस्थाओं की साख पर भी प्रश्न खड़े करता है।
क्या अब पंचायत चुनावों की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू होगी?
अब सभी की निगाहें 25 जून को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं। यदि अदालत सरकार की दलील से संतुष्ट होती है तो संभव है कि प्रक्रिया को संशोधित अधिसूचना के साथ पुनः प्रारंभ किया जाए। अन्यथा यह चुनाव लंबे समय तक टल सकते हैं।
जनता की चिंता: पंचायतें लावारिस, लोकतंत्र अधर में
इस पूरे प्रकरण का सबसे बड़ा शिकार बना है — ग्राम स्तर का लोकतंत्र। पंचायतें न प्रतिनिधि के भरोसे हैं, न स्थायी प्रशासक के। अगर चुनाव प्रक्रिया में ऐसा ही भ्रम बना रहा तो प्रदेश की ग्रामीण व्यवस्था और जनप्रतिनिधित्व पर गहरा असर पड़ेगा।