नई दिल्ली, 07 जून (आरएनएस)। भारत सरकार ने जब क्रिप्टो पर टैक्स लगाने का फैसला लिया था, तो मंशा साफ थी—ट्रेडिंग को रेगुलेट करना और राजस्व में इजाफा करना। लेकिन दो साल बाद, सच्चाई इससे बिल्कुल उलट दिख रही है। 30 प्रतिशत कैपिटल गेन टैक्स और हर एक ट्रांजैक्शन पर 1 प्रतिशत टीडीएस की नीति ने न सिर्फ लोकल क्रिप्टो इकोसिस्टम को तोड़ा है, बल्कि लाखों भारतीय ट्रेडर्स को विदेशी प्लेटफॉर्म्स की ओर मोड़ दिया है।
इसका नतीजा? भारत का क्रिप्टो बाजार तेजी से सरकार की पकड़ से बाहर होता जा रहा है। न टैक्स मिल रहा है, न डेटा और न ही किसी तरह का रेगुलेशन।जुलाई 2022 से लागू क्रिप्टो टैक्स ढांचा—जो हर लाभ पर 30 प्रतिशत टैक्स और हर लेन-देन पर 1 प्रतिशत टीडीएस काटता है—ने पारदर्शिता लाने की कोशिश तो की, लेकिन इसके असर से देश का बड़ा हिस्सा सीधे पी2पी (पियर-टू-पियर) या फिर ऑफशोर ट्रेडिंग की ओर खिसक गया। इन प्लेटफॉर्म्स पर न कोई टैक्स कटता है, न जानकारी मिलती है, और न ही इन्हें भारतीय कानूनों का डर है। सीधे शब्दों में कहें तो यह रेगुलेशन का ब्लैक होल बन चुका है। टीडीएस लागू होते ही भारत के लोकल क्रिप्टो एक्सचेंजों का ट्रैफिक तेजी से गिरा और विदेशी प्लेटफॉर्म्स का अचानक बूम आ गया। एक लीडिंग ग्लोबल एक्सचेंज ने सिर्फ एक महीने में 4.5 लाख भारतीय यूजर रजिस्ट्रेशन दर्ज किए। वर्तमान में 30-50 लाख भारतीय ट्रेडर्स विदेशी प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहे हैं—जो भारत के लिए न सिर्फ टैक्स लॉस है, बल्कि डिजिटल संप्रभुता का भी मुद्दा है। एक साल में भारतीय यूजर्स ने करीब ?3.5 लाख करोड़ की क्रिप्टो विदेशी प्लेटफॉर्म्स पर एक्सचेंज की, लेकिन इस पर टैक्स वसूली सिर्फ 0.2 प्रतिशत तक सीमित रही। इसकी तुलना में देश के लोकल एक्सचेंजों से सिर्फ ?366 करोड़ की टीडीएस आय हुई, जबकि अनुमान के मुताबिक सरकार को ?2,600 करोड़ से ज्यादा की आमदनी होनी चाहिए थी। पी2पी प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेडर्स सीधे एक-दूसरे से डील करते हैं। कोई रेगुलेटेड एक्सचेंज नहीं होता, इसलिए टैक्स वसूली की कोई गुंजाइश नहीं रहती। यहां तक कि कई यूजर्स बिना केवाईसी प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं, जिससे मनी लॉन्ड्रिंग और फ्रॉड की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। हाल के महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां निवेशकों के अकाउंट ब्लॉक हो गए या उन्हें कानूनी नोटिस मिलने लगे। सरकार ने कुछ विदेशी प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करने की कोशिश की, लेकिन यूजर्स ने वीपीएन और मिरर साइट्स के जरिए उसका तोड़ निकाल लिया। ब्लॉक की गई वेबसाइट्स पर ट्रैफिक थोड़े समय के लिए गिरा, लेकिन फिर वापस उसी स्तर पर पहुंच गया। भारत के पास दो ही रास्ते हैं—या तो टैक्स सख्ती के नाम पर इनोवेशन को देश से बाहर जाने दें, या फिर वैश्विक मानकों के मुताबिक नीति बनाकर इसे देश में मजबूत करें। जरूरत है एक इंटर-मिनिस्ट्री टास्क फोर्स की जो क्रिप्टो, वेब3 और ब्लॉकचेन जैसे सेक्टर्स के लिए व्यवहारिक, स्मार्ट और टैक्स-फ्रेंडली फ्रेमवर्क तैयार करे। यह सिर्फ क्रिप्टो की बात नहीं है, यह भारत की डिजिटल इकॉनमी पर नियंत्रण की लड़ाई है। अगर टैक्स नीतियां व्यवहारिक नहीं होंगी, तो भारत का अगला डिजिटल यूनिकॉर्न सिंगापुर या दुबई में खड़ा होगा—न कि बेंगलुरु या हैदराबाद में। अब वक्त है कि सरकार इस संकेत को पढ़े, और उसे दिशा दे।