अजय कुमार हुडी
हाल ही में इजरायल और ईरान के बीच गहराए सैन्य टकराव ने वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए हमले और उसके जवाब में ईरान के पलटवार ने दशकों से चली आ रही प्रतिद्वंदिता को एक नए खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है। इस घटनाक्रम ने न केवल मध्य पूर्व में तनाव को चरम पर पहुँचाया है, बल्कि कच्चे तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि, डोनाल्ड ट्रंप जैसे वैश्विक नेताओं के बयानों और भारत की विदेश नीति पर इसके प्रभावों को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
इजरायल और ईरान के बीच सीधे सैन्य टकराव ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हडक़ंप मचा दिया है। फारस की खाड़ी, जो विश्व के एक बड़े हिस्से को तेल की आपूर्ति करती है, में किसी भी तरह की अस्थिरता कच्चे तेल की कीमतों को आसमान छूने पर मजबूर कर सकती है। भारत जैसे देश, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर हैं, के लिए यह स्थिति आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। उच्च तेल की कीमतें न केवल मुद्रास्फीति को बढ़ाएंगी बल्कि आर्थिक विकास की गति को भी धीमा कर सकती हैं।
डोनाल्ड ट्रंप जैसे प्रभावशाली नेताओं के बयान इस संवेदनशील स्थिति को और जटिल बना सकते हैं। उनके बयान, चाहे वे किसी भी पक्ष में हों, वैश्विक जनमत और विभिन्न देशों की नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे समय में जब संयम और कूटनीति की आवश्यकता है, भडक़ाऊ बयानबाजी आग में घी डालने का काम कर सकती है। यह घटनाक्रम दिखाता है कि कैसे घरेलू राजनीति और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करती हैं।
भारत के लिए यह स्थिति एक जटिल कूटनीतिक चुनौती पेश करती है। ऐतिहासिक रूप से, भारत के इजरायल और ईरान दोनों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। इजरायल के साथ उसके रणनीतिक और रक्षा संबंध हैं, वहीं ईरान मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुँच के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता और ट्रांजिट मार्ग है। ऐसे में, भारत को संतुलन साधते हुए अपनी विदेश नीति को आगे बढ़ाना होगा। दरअसल,संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, जहां वह बातचीत और कूटनीति के माध्यम से तनाव को कम करने का आह्वान कर सकता है। भारत को अपने नागरिकों और आर्थिक हितों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी होगी, खासकर मध्य पूर्व में रहने वाले लाखों भारतीयों के संदर्भ में। इसके अलावा, इजरायल-ईरान संघर्ष के वैश्विक भू-राजनीति पर दूरगामी परिणाम होंगे। यह मध्य पूर्व में नए गठबंधन और दुश्मनी को जन्म दे सकता है। चीन, रूस और अमेरिका जैसे प्रमुख खिलाड़ी इस स्थिति का लाभ उठाने या अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करेंगे, जिससे वैश्विक शक्ति संतुलन और भी जटिल हो जाएगा।
यह संघर्ष वैश्विक व्यापार मार्गों, विशेषकर स्वेज नहर और होर्मुज जलडमरूमध्य की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान आ सकता है। आतंकवाद और अतिवाद के बढऩे की आशंका भी बनी हुई है, क्योंकि अस्थिरता ऐसे तत्वों को पनपने के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करती है। कुल मिलाकर इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव एक गंभीर चुनौती है जिसके वैश्विक शांति, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति पर दूरगामी परिणाम होंगे। भारत को इस नाजुक स्थिति में अत्यंत सावधानी और कूटनीति के साथ आगे बढऩा होगा। संतुलन साधते हुए, भारत को शांतिपूर्ण समाधानों का समर्थन करना चाहिए, अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए और वैश्विक स्थिरता बनाए रखने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इस समय संयम, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही एकमात्र रास्ता है जो इस क्षेत्र को एक बड़े संघर्ष में धकेलने से रोक सकता है।
( लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैं )