अजय दीक्षित
ईसा के बाद पहली सदी 55 में रोम में एक शासक हुआ नीरो। उसने अपने पूरे कुल का नाश कर दिया और अंत में रोम में आग लग वादी। इसके बाद वह एक ऊंचे टीले पर बैठ गया और बंशी बजाने लगा।यह बात कांग्रेस नेता एवं लोकसभा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर एक दम सटीक बैठती है।
कांग्रेस रूपी रोम का सत्यानाश कर तत्कालीन सम्राट नीरो की भांति ऊलजुलूल व्यानबाजी कर बंशी बजा रहे हैं। उन्होंने 140 वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी की बंशी बजा दी है।
नीरो कथानक रोम का बहुत ही प्रतिष्ठित जूलियन क्लाउड्स परिवार का
55 एडी में बंशज होकर शासक हुआ।उसने पूरे परिवार को शनै शनै मार दिया और रोम में आग लगा दी खुद इसे देखकर आनंदित हो कर बांसुरी बजाने लगा। इटली में आज भी इस बकाया को सुनाया जाता है।
भारत की 1885 में स्थापित कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी गयी थी और उस पार्टी ने 70 वर्ष इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शासन किया।राहुल गांधी के परिवार के तीन प्रधानमंत्री बने।उनके पर नाना जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी,।केअब 2025 में राहुल गांधी उसी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को निशाना बना रहे हैं जो उनके पुरखों ने स्थापित की ।
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर प्रश्न चिन्ह, भारत पाकिस्तान युद्ध में सेना पर प्रश्न चिन्ह, वायु सेना के कितने जेट गिरे,सीज फायर पर प्रश्न चिन्ह,संसद का विशेष सत्र, अपने बुजुर्ग नेता शशि थरूर, सलमान खुर्शीद,पी चिदंबरम पर अविश्वास, आदि ऐसे कारनामे में है कि वे नेता प्रतिपक्ष को सारगर्भित नहीं करते ।अब वे आगे आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से हार के अंदेशे से कन्नी काट रहे हैं।
दरअसल 2024 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आशातीत सफलता हासिल तो नहीं हुई मगर 100 सीट जीतने से सम्मान रह गया और वह नेता प्रतिपक्ष भी बन गए। लेकिन 2014 से अब तक 42 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें से एक हिमाचल प्रदेश,एक कर्नाटक,एक तेलंगाना में ही कांग्रेस जीत सकी है। बरना उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, गोवा, ओड़िशा, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम,असम, नागालैंड, त्रिपुरा, जम्मू कश्मीर, बिहार, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश उत्तराखंड,केरल,में दो बार विधानसभा चुनाव हार चुकी है।
देश में पूर्व से पश्चिमी और उत्तर से दक्षिण में ले दे के कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना में सरकार है ।राज्य सभा में सांसदों की संख्या 31 रह गई है।
राहुल गांधी कांग्रेस की इस दशा के लिए नीरो के रोम की तरह जिम्मेदार हैं। वे कितने लोकतांत्रिक व्यवस्था के हामी यह इस घटना से मालूम हुआ था जब संसद द्वारा पारित उनके ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कागज को प्रेस ब्रीफिंग में फाड़ दिया था और सरकार अपना निर्णय बदलना पड़ा था।इस समय कांग्रेस इतनी गयी गुजरी पार्टी हो चुकी है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के संजय राउत ने घोषणा की है कि वह अब कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव नहीं लड़ेगी । ममता बनर्जी ने तो कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में ही पल्ला झाड़ लिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस बोझ समझती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप जैसी छोटी पार्टी ने अलग चुनाव लड़ा। तमिलनाडु, केरल में क्षेत्रीय पार्टी जितनी सीट दे दें वह स्वीकार है।
मप्र, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा,में 10-20 साल तक कोई उम्मीद नहीं है।कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी है कि कोई नया कार्यकर्ता क्यों पार्टी से जुड़े इसका कोई संस्थान नहीं है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत, कमलनाथ, सरीखे उम्र दराज नेता हैं, अंबिका सोनी अभी भी सक्रियता चाहती हैं, मनीष तिवारी,आनंद शर्मा को घर बैठा दिया है।कितनी अनहोनी बात है कि केंद्रीय सरकार ने कांग्रेस द्वारा सुझाए उन नामो को दर किनार कर दिया जो उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने थे जो भारत का पक्ष रखने विदेश जाने थे। क्योंकि राहुल गांधी ने 11 मई को युद्ध विराम के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर से पूछा था कि भारत के कितने लड़ाकू विमान
गिर गए। युद्ध में यह महत्वपूर्ण होता है कि कौन जीता है। द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका,रूस यानी मित्र देश मिलकर जापान और जर्मनी से लड़े ।दोनों तरफ के लाखों सैनिक मारे गए क्योंकि युद्ध आठ साल चला था।1944 में अमेरिका द्वारा परमाणु हमला करने के बाद जापान के हिरोशिमा, नागासाकी में एक लाख लोग मर गए तब युद्ध बंद हुआ। लेकिन इंग्लैंड में तत्कालीन प्रधानमंत्री विगीष्टन चर्चिल ने यही कहा कि युद्ध में इंग्लैंड की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई। और उन्होंने इस्तीफा दे दिया।चुनाव में उनकी कंजरवेटिव पार्टी भी चुनाव हार गई।कहने का मतलब यह है कि युद्ध की समीक्षा तो होती है लेकिन उसकी खोजबीन नहीं करनी चाहिए। लेकिन राहुल गांधी कभी विदेश मंत्री एस जयशंकर को घेरते है कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र का सरेंडर कहते हैं।
( लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैँ )