उत्तराखंड पंचायत चुनाव पर बड़ा झटका: हाईकोर्ट के आदेश पर अधिसूचना रद्द, प्रक्रिया स्थगित

देहरादून, 24 जून 2025: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर सनसनीखेज खबर सामने आई है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों से संबंधित 21 जून 2025 को जारी अधिसूचना को वापस ले लिया है और आगामी आदेशों तक पूरी चुनावी प्रक्रिया को स्थगित कर दिया है। इसके साथ ही 12 जिलों में लागू आदर्श आचार संहिता भी तत्काल प्रभाव से हटा ली गई है। यह फैसला नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया गया, जहां आरक्षण प्रक्रिया को लेकर चल रही याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट का सख्त रुख, सरकार की लापरवाही उजागर

नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा शामिल हैं, ने सोमवार को पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की चक्रीय व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार आरक्षण नीति को स्पष्ट करने में पूरी तरह विफल रही है। हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि बिना विधिसम्मत आरक्षण प्रक्रिया के चुनाव कराना संवैधानिक उल्लंघन होगा। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि जब तक आरक्षण प्रक्रिया को नए सिरे से और विधिवत पूरा नहीं किया जाता, तब तक कोई भी चुनावी कार्यवाही नहीं होगी।

नामांकन प्रक्रिया भी रुकी, ग्रामीण क्षेत्रों में हलचल

राज्य निर्वाचन आयोग ने 21 जून को अधिसूचना जारी कर पंचायत चुनावों का कार्यक्रम घोषित किया था। इसके तहत 25 जून से नामांकन शुरू होने थे, 10 और 15 जुलाई को दो चरणों में मतदान और 19 जुलाई को मतगणना प्रस्तावित थी। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि नामांकन सहित सभी प्रक्रियाएं अगले आदेश तक स्थगित रहेंगी। इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी पर अचानक ब्रेक लग गया है। कई उम्मीदवार, जो नामांकन की तैयारी में जुटे थे, अब अनिश्चितता के दौर में हैं।

आरक्षण विवाद बना रोड़ा

पंचायत चुनावों में आरक्षण, खासकर ओबीसी आरक्षण, को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सरकार ने हाल ही में पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर ओबीसी आरक्षण की सीमा को 14 प्रतिशत से हटाया था, लेकिन नई व्यवस्था में एससी, एसटी और ओबीसी का कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होने की शर्त जोड़ी गई। इस नियमावली को कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश गजट अधिसूचना को कोर्ट ने अपर्याप्त माना, जिसके चलते चुनावी प्रक्रिया पर रोक बरकरार रही।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इस फैसले ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा, “हाईकोर्ट का फैसला सरकार की नाकामी को दर्शाता है। आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर लापरवाही बरतना जनता के साथ धोखा है।” वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर रही है और जल्द ही उचित कदम उठाए जाएंगे।पंचायतों में संवैधानिक संकट गहराया
उत्तराखंड की 7,823 ग्राम पंचायतों, 3,157 क्षेत्र पंचायतों और 389 जिला पंचायत सीटों का कार्यकाल नवंबर 2024 में समाप्त हो चुका है। तब से ये पंचायतें प्रशासकों के हवाले हैं, जिनका कार्यकाल भी मई 2025 में खत्म हो गया था। अब चुनाव स्थगित होने से पंचायतें लावारिस हालत में हैं, जिससे ग्रामीण विकास कार्य ठप होने का खतरा मंडरा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह उत्तराखंड के गठन के बाद पहला मौका है, जब पंचायतों में इतना गहरा संवैधानिक संकट पैदा हुआ है।

देहरादून, 24 जून 2025: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर सनसनीखेज खबर सामने आई है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों से संबंधित 21 जून 2025 को जारी अधिसूचना को वापस ले लिया है और आगामी आदेशों तक पूरी चुनावी प्रक्रिया को स्थगित कर दिया है। इसके साथ ही 12 जिलों में लागू आदर्श आचार संहिता भी तत्काल प्रभाव से हटा ली गई है। यह फैसला नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया गया, जहां आरक्षण प्रक्रिया को लेकर चल रही याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट का सख्त रुख, सरकार की लापरवाही उजागर

नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा शामिल हैं, ने सोमवार को पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की चक्रीय व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार आरक्षण नीति को स्पष्ट करने में पूरी तरह विफल रही है। हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि बिना विधिसम्मत आरक्षण प्रक्रिया के चुनाव कराना संवैधानिक उल्लंघन होगा। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि जब तक आरक्षण प्रक्रिया को नए सिरे से और विधिवत पूरा नहीं किया जाता, तब तक कोई भी चुनावी कार्यवाही नहीं होगी।

नामांकन प्रक्रिया भी रुकी, ग्रामीण क्षेत्रों में हलचल

राज्य निर्वाचन आयोग ने 21 जून को अधिसूचना जारी कर पंचायत चुनावों का कार्यक्रम घोषित किया था। इसके तहत 25 जून से नामांकन शुरू होने थे, 10 और 15 जुलाई को दो चरणों में मतदान और 19 जुलाई को मतगणना प्रस्तावित थी। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि नामांकन सहित सभी प्रक्रियाएं अगले आदेश तक स्थगित रहेंगी। इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी पर अचानक ब्रेक लग गया है। कई उम्मीदवार, जो नामांकन की तैयारी में जुटे थे, अब अनिश्चितता के दौर में हैं।

आरक्षण विवाद बना रोड़ा

पंचायत चुनावों में आरक्षण, खासकर ओबीसी आरक्षण, को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सरकार ने हाल ही में पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर ओबीसी आरक्षण की सीमा को 14 प्रतिशत से हटाया था, लेकिन नई व्यवस्था में एससी, एसटी और ओबीसी का कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होने की शर्त जोड़ी गई। इस नियमावली को कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश गजट अधिसूचना को कोर्ट ने अपर्याप्त माना, जिसके चलते चुनावी प्रक्रिया पर रोक बरकरार रही।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इस फैसले ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा, “हाईकोर्ट का फैसला सरकार की नाकामी को दर्शाता है। आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर लापरवाही बरतना जनता के साथ धोखा है।” वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर रही है और जल्द ही उचित कदम उठाए जाएंगे।पंचायतों में संवैधानिक संकट गहराया
उत्तराखंड की 7,823 ग्राम पंचायतों, 3,157 क्षेत्र पंचायतों और 389 जिला पंचायत सीटों का कार्यकाल नवंबर 2024 में समाप्त हो चुका है। तब से ये पंचायतें प्रशासकों के हवाले हैं, जिनका कार्यकाल भी मई 2025 में खत्म हो गया था। अब चुनाव स्थगित होने से पंचायतें लावारिस हालत में हैं, जिससे ग्रामीण विकास कार्य ठप होने का खतरा मंडरा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह उत्तराखंड के गठन के बाद पहला मौका है, जब पंचायतों में इतना गहरा संवैधानिक संकट पैदा हुआ है।

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