पहाड़ों पर एक से ज्यादा पैदल मार्ग तैयार रखना चाहिएवीरेंद्र कुमार पैन्यूली

खराब मौसम, भूस्खलन और दुर्घटनाओं की वजह से केदारनाथ पैदल मार्ग को बार-बार रोकना पड़ रहा है। अभी 15 जून को ही जंगलचट्टी के पास मार्ग पर भारी पत्थर गिरने से पैदल यात्रा रोक दी गई। इस बार 2 मई को यात्रा के पहले ही दिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। बार-बार यह जरूरत महसूस हो रही है कि भीड़भाड़ व दुर्घटनाओं से बचने के लिए केदारनाथ पुरी को वैकल्पिक मार्गों से जोड़ने की जरूरत है।
लोग अभी भूले नहीं हैं। 31 जुलाई 2024 की रात केदारनाथ पैदल मार्ग में बादल फटने से जंगलचट्टी, भीमबली, लिंचोली तथा रामबाड़ा के क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ था। भीमबली पुलिस चौकी के पास इसका लगभग 30 मीटर हिस्सा ढह गया था। दो पुल भी बह गए थे। जंगलचट्टी में 60 मीटर व गौरीकुंड में घोड़ा पड़ाव के पास 15 मीटर सड़क बिल्कुल खत्म हो गई थी। लगभग 15,000 यात्री जहां-तहां फंस गए थे। उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने में पूरे पंद्रह दिन लग गए थे। पैदल मार्ग लगभग 29 जगह क्षतिग्रस्त हुआ था। इसके बाद तो पूरे यात्राकाल में पैदल मार्ग खुलता और बंद होता रहा। इस साल जून में ही मार्ग पर भारी पत्थर गिरने से पैदल यात्रा रोकनी पड़ी। मानसून से पहले भी पूरे देश में तेज बरसात होने लगी है। उत्तराखंड भी इसका अपवाद नहीं है। पूरी आशंका है कि भूस्खलन व मार्ग पर मलबा गिरना जारी रहेगा। इसलिए वैकल्पिक पैदल मार्गों की रणनीति अपनाने का समय आ गया है।
इस बार हेलीकॉप्टर दुर्घटना भी 15 जून को हुई है, जिसमें कुल सात लोगों ने जान गंवाई है। वैसे भी बरसात में हेलीकॉप्टर सेवा बाधित होती है। ऐसे में, वैकल्पिक पैदल मार्गों को चुस्त-दुरस्त रखना आवश्यक हो गया है। बीते वर्ष मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मार्ग की क्षतियों के आकलन व उस पर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी के पूर्व प्रधानाचार्य (सेवा निवृत्त) कर्नल अजय कोठियाल को दी थी। आकलन में यह भी पता चला है कि गिरते झरनों से होने वाले कटाव से भी पैदल मार्ग की चौड़ाई जगह-जगह कम हुई है। अब साल 2013 में ध्वस्त हुए व बंद किए गए पैदल मार्ग को चालू कर वहां से भी यात्रा चलाई जाएगी। वर्तमान पैदल मार्ग को भी पूरी तरह से ठीक किया जाएगा। 16-17 जून 2013 की आपदा में पारंपरिक 14 किलोमीटर का गौरीकुंड- केदारनाथ पैदल मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। रामबाड़ा का तो नामो-निशान ही नहीं बचा। वन विभाग से मिली भूमि उपयोग की अनुमति के बाद 2013 में क्षतिग्रस्त हुए मार्ग को ठीक करने की राह खुली।
कर्नल कोठियाल के ही नेतृत्व में उनके 12 सदस्यीय दल ने जून 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद मंदाकिनी घाटी में ट्रैकिंग कर तीन वैकल्पिक मार्ग बताए थे। एक माह के भीतर ही उत्तराखंड सरकार को चौमासी-खाम-रेका केदारनाथ मार्ग सुझाया था। इसमें दूरी 34 किलोमीटर है और चलने में तीन दिन लगते हैं। वैकल्पिक मार्गों को अगर दुरुस्त कर दिया जाए, तब मंदाकिनी के दोनों छोरों से चलने पर केदारपुरी पहुंचने के लिए दो वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो जाएंगे। जुलाई 2024 की आपदा के बाद केवल एक ही खुलते और बंद होते मार्ग की वजह से श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित रखना मुश्किल हो जा रहा है। पहाड़ों में अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अधिक मार्ग तो होने ही चाहिए, क्योंकि समय के साथ श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती ही जाएगी।
बीते सीजन में लगभग 16 लाख लोग पैदल मार्ग से केदारनाथ पहुंचे थे। इस संख्या में अगर स्थानीय लोगों, घोड़े-खच्चर, पालकी लाने-ले जाने वालों की संख्या के साथ पूरे मार्ग पर आने-जाने वाले लोगों को जोड़ लें, तो सोचकर ही मुश्किल का एहसास होता है। इतनी भारी संख्या में लोग एक ही पैदल मार्ग से यात्रा करेंगे, तो हादसों की आशंका रहेगी। पहाड़ों को बेतहाशा भीड़ के लिए तैयार रहना होगा, इसके लिए दो से ज्यादा पैदल मार्गों को दुरुस्त रखना होगा। वैकल्पिक मार्गों पर संचार सुविधा भी पुख्ता रखने की जरूरत है। पहाड़ों में मोबाइल फोन संपर्क टूटने पर परिजन बहुत चिंतित हो जाते हैं और राहत कार्यों में भी खूब परेशानी आती है। अफवाहों को भी बल मिलता है। मतलब, पहाड़ों में पैदल यात्रा और संचार का क्रम सुनिश्चित रहना चाहिए।

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