राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विमर्श में उठा स्वर : भारतीय संस्कृति और आत्मनिर्भरता के अनुरूप हो शिक्षा व्यवस्था

लखनऊ 22 जून (आरएनएस )।शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, अवध प्रांत द्वारा रविवार को लखनऊ के गोमतीनगर स्थित आर.के. मित्तल सभागार में  राष्ट्रीय शिक्षा नीति: देश की शिक्षा अपनी संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप बने  विषयक एक विमर्श का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य और एस.आर. ग्रुप के चेयरमैन पवन सिंह चौहान रहे, जबकि अध्यक्षता न्यास के राष्ट्रीय सह संयोजक संजय स्वामी ने की। दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।न्यास के अवध प्रांत संयोजक प्रमिल द्विवेदी ने स्वागत भाषण में कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश की शिक्षा भारतीय दृष्टिकोण से विकसित होने की अपेक्षा थी, परंतु यह औपनिवेशिक ढांचे से बाहर नहीं निकल सकी। न्यास का उद्देश्य न केवल पाठ्यक्रम की त्रुटियों में सुधार करना है, बल्कि भारत की भाषा, धर्म, संस्कृति और परंपराओं के विरुद्ध चल रहे वैश्विक षड्यंत्रों को उजागर कर उन्हें रोकना भी है।मुख्य अतिथि पवन सिंह चौहान ने कहा कि यदि भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो इसके छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होगा, और शिक्षा ही इसका सशक्त माध्यम है। उन्होंने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस संगठन ने बहुत कम समय में शिक्षा में भारतीयता और राष्ट्रीयता का बीजारोपण किया है। उन्होंने आह्वान किया कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।न्यास के राष्ट्रीय सह संयोजक संजय स्वामी ने बताया कि संगठन की स्थापना 24 मई 2007 को शिक्षा में भारतीयता के समावेश हेतु की गई थी। उन्होंने कहा कि न्यास अब तक 400 से अधिक संगोष्ठियों और कार्यशालाओं के माध्यम से नई शिक्षा नीति में सुझाव देकर अब उसके क्रियान्वयन की दिशा में अग्रसर है।उन्होंने जानकारी दी कि न्यास के नेतृत्व में विभिन्न प्रयासों से देश की न्याय प्रणाली में भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा मिला है, यौन शिक्षा के विकृत पाठ्यक्रम रोके गए हैं, राष्ट्रीय गणित दिवस की स्थापना हुई है, दीक्षांत समारोहों में भारतीय वेशभूषा अपनाई गई है और वैदिक गणित विषय पर 38 विश्वविद्यालयों तथा इतने ही महाविद्यालयों ने एमओयू कर पाठ्यक्रम शुरू किए हैं।संजय स्वामी ने यह भी बताया कि न्यायालयों से 12 निर्णय शिक्षा बचाओ आंदोलन के पक्ष में आए हैं, जिससे पाठ्यक्रमों की विकृतियों को चुनौती मिली है। कई स्थानों पर परीक्षाएं बिना परीक्षक के कराई गईं और छात्रों ने नकल नहीं की—यह चरित्र निर्माण आधारित शिक्षा का प्रमाण है।उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में परिवर्तन सरकार और समाज दोनों के साझा प्रयासों से संभव होता है, इसलिए इस अभियान में सभी को तन-मन-धन से सहयोग देना चाहिए।प्रांत सह संयोजक डॉ. कीर्ति विक्रम सिंह ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में प्रो. अवनीश कुमार, प्रो. कीर्ति नारायण, राजेश अग्रवाल, प्रो. शीला मिश्रा, प्रवीण द्विवेदी, प्रो. हिमांशु सिंह, के.बी. पंत, प्रो. आर.के. पांडेय, ए.के. श्रीवास्तव, संजीव सिंह, डॉ. नीता सक्सेना सहित प्रदेशभर से आए शिक्षाविद, वैज्ञानिक, प्रोफेसर, डॉक्टर, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और बैंकर्स समेत अनेक गणमान्यजन शामिल हुए।कार्यक्रम के अंत में अवध प्रांत में संगठनात्मक विस्तार की घोषणा की गई, जिसमें प्रमिल द्विवेदी को प्रांत संयोजक और डॉ. कीर्ति विक्रम सिंह को सह संयोजक का दायित्व सौंपा गया। सभी ने इस पहल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में एक सशक्त कदम बताया।

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