अशोक शर्मा
भारत एक बार फिर एक हृदयविदारक विमान हादसे के शोक में डूबा है। अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की बोइंग ड्रीमलाइनर उड़ान के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर ने देश को झकझोर कर रख दिया है। 230 यात्रियों और 12 चालक दल के सदस्यों को लेकर उड़ान भरते ही, महज 33 सेकंड में विमान ने शहर के एक कॉलेज हॉस्टल से टकराकर अग्नि-कुंड का रूप ले लिया। इस हादसे में कई परिवार उजड़ गए, जिनमें गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी शामिल थे।
यह हादसा 1996 में चरखी दादरी में हुए भयावह मिड-एयर टकराव के बाद देश की सबसे बड़ी विमानन त्रासदी बन गई है। इस बार भी सवाल वही हैं — तकनीकी चूक, मानव त्रुटि या व्यवस्थागत विफलता? लेकिन उत्तर अभी सामने नहीं हैं। एक संजीदा और निष्पक्ष जांच के बिना किसी पर दोष मढ़ना न केवल अनुचित होगा, बल्कि इससे हादसे की जड़ तक पहुंचने में भी बाधा उत्पन्न होगी।
फिलहाल जांच एजेंसियों के सामने दोहरी चुनौती है — एक ओर दुर्घटना के तकनीकी कारणों की तह तक पहुंचना, दूसरी ओर शिनाख्त और राहत कार्यों को व्यवस्थित करना, क्योंकि हादसा शहरी क्षेत्र में हुआ है और सैकड़ों लोग स्थल पर पहुंच चुके थे।
इस दुर्घटना ने एक बार फिर विमानन सुरक्षा की उस हकीकत को उजागर किया है, जिसे अक्सर तेज़ी से बढ़ते हवाई यातायात की चकाचौंध में अनदेखा कर दिया जाता है। 2019 से 2024 के बीच भारत में घरेलू उड़ानों की संख्या 646 से बढ़कर 823 हो गई, और यात्रियों की संख्या 137 करोड़ से बढ़कर 228 करोड़ तक पहुंच गई। परंतु सवाल यह है कि क्या यह वृद्धि संसाधनों और गुणवत्ता के समांतर हुई?
विमानन उद्योग में कुशल पायलटों, तकनीकी इंजीनियरों, ग्राउंड स्टाफ और नियंत्रण प्रणाली की गुणवत्ता सर्वोपरि होती है। हाल के वर्षों में प्रशिक्षण में गिरावट, मेंटेनेंस प्रोटोकॉल में ढिलाई और कर्मचारी संख्या में असंतुलन जैसी चिंताएं सामने आती रही हैं। और इस बार के हादसे ने इन चिंताओं को और गंभीर बना दिया है।
भारत को एक वैश्विक विमानन केंद्र बनाने का सपना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय से देखा है। दुबई और सिंगापुर जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए न केवल अवसंरचना बल्कि यात्रियों का विश्वास भी जरूरी है। इसीलिए AI-171 जैसे हादसे देश की छवि और योजनाओं दोनों पर गंभीर असर डाल सकते हैं।
सरकार और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के लिए यह समय केवल शोक प्रकट करने का नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने का है। सुरक्षा प्रोटोकॉल की फिर से समीक्षा, दोषियों की स्पष्ट पहचान और पारदर्शी जांच के जरिए ही देश के नागरिकों का विश्वास लौटाया जा सकता है।
“आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ने से पहले ज़रूरी है ज़मीन पर मज़बूत व्यवस्था। जब तक सुरक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे हमारी उड़ानों को डर में बदलते रहेंगे।”
हवाई यात्रा एक आश्वस्ति और भरोसे का माध्यम होना चाहिए, भय और अनिश्चितता का नहीं।
( लेख में व्यक्त विचार निजी हैं )